ब्रह्मांड क्या है? इस बारे में सोचते ही हमारी आंखे ऊपर आकाश की तरफ देखने लगती हैं विशेषकर रात के समय क्योंकि जितनी भी फोटोज या विडियोज हमने देखी है ब्रह्मांड की उसमे तारों, ग्रहों, उल्का पिंडो, ब्लैकहोहल्स आदि की उन्हें रात के अंधेरे में ही चमकता हुआ देखा है। ब्रह्मांड हमेशा से ही एक रोचकपूर्ण विषय रहा है सभी मानव जाति के लिए। इस लेख में आपको ब्रह्मांड के बारे में बताया जाएगा लेकिन दो तरीकों से एक वैज्ञानिक तरीके से जिसे बिग बैंग सिद्धांत कहते है दूसरे हिंदू धर्म यानि सनातन धर्म के तरीके से क्योंकि इस धर्म की उत्पति मानव जीवन की उत्पति से पहले की है।
ब्रह्मांड क्या है?
ब्रह्मांड सम्पूर्ण समय और अंतरिक्ष में मौजूद सभी वस्तुओं को कहते हैं जिसमे सभी ग्रह, उपग्रह, तारे, गैलेक्सिया, खगोलीय पिंड, सारे कण, पदार्थ और सारी ऊर्जा शामिल हैं जिसमे आप और हम भी शामिल है, कहा जाता है की हम सितारा प्रजाति से संबंध रखते हैं। हम भी इस ब्रह्मांड का ही हिस्सा हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने जितना भी ब्रह्मांड के बारे में जाना है वह सिर्फ 5% हैं अभी भी 95% ब्रह्मांड के बारे में जानना बाकी हैं जिस पर अभी भी खोजबीन जारी है। माना जाता हैं की हम जिस मिल्किवे आकाशगंगा में रहता है उस तरह की अरबों खरबों आकाशगंगाएं है, उन आकाशगंगाओं में अरबों खरबों तारे, ग्रह, खगोलीय पिंड आदि है।
ब्रह्मांड की उत्पति बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार
बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्मांड का जन्म हुआ। तब सारी ऊर्जा और भौतिक तत्व एक बिंदु में सिमटे हुए थे और जब वह बिंदु बहुत गर्म हो गया तो उसमे एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ जिससे उस बिंदु में समाहित सारी ऊर्जा, कण, पदार्थ आदि उससे बाहर आकर फैल गए और ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। इसे ही बिग बैंग सिद्धांत कहते है।
ब्रह्मांड का विस्तार अभी तक जारी है और इसका विस्तार कब तक होता रहेगा? या इस ब्रह्मांड का अंत कब होगा? इसके बारे में कोई सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। ब्रह्मांड की उत्पति के साथ ही समय की भी उत्पति हुई। प्रकाश की गति सबसे तेज होती हैं उसी गति से जो ब्रह्मांड हमने देखा है वह सिर्फ 5% हैं। वैज्ञानिकों का मानना है की जिस ब्रह्मांड में हम रहते हैं उसी तरह के कई और ब्रह्मांड हो सकते है जिस तरह की मिल्की वे आकाश गंगा में हम रहते उसी तरह की ना जाने कितनी आकाशगंगाए होगी। जिस ग्रह में हम रह रहे है उसी तरह के दूसरे ग्रह भी हो सकते हैं, जहां मानव जाति अभी शुरुआती दौर में होगी या हमसे भी ज्यादा एडवांस टेक्निक के साथ होगी या वहा अभी जीवन की शुरुआत ही हो रही होगी। शुरुआत में पृथ्वी बहुत ही ज्यादा गर्म थी फिर धीरे-धीरे वह ठंडी होने लगी फिर उसमे वर्षा शुरू हुई और इस तरह से जीव-जंतुओं का जीवन आरंभ हुआ। वैज्ञानिकों का मानना है की कोई अदृश्य ऊर्जा पूरे ब्रह्मांड को चला रही है।
ब्रह्मांड की उत्पति सनातन धर्म के अनुसार
यह धर्म मानव उत्पति से पहले का है जिसमे तीन देव प्रमुख हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश। जिनमे ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना करने के लिए, विष्णु जी को पालनकर्ता के लिए और महेश यानि शिवजी को संहार के रूप में जाना जाता हैं।
ब्रह्मांड के पिता शिवजी है और जब एक ब्रह्मांड खत्म होता है तो उसी की राख से वह दूसरे ब्रह्मांड की रचना करते हैं शिवपुराण के अनुसार। शिवजी ही तीनों लोकों के स्वामी है, इन तीनो लोको की स्थापना देवी शक्ति के साथ मिलकर की है। शिवजी के ही तांडव नृत्य से निकली ऊर्जा से ही तारे, ग्रह, आकाशगंगाओं आदि का निर्माण हुआ समय और स्थान का भी। शिवजी का ना आदि है ना अंत है। वही शून्य है वही पूरा ब्रह्मांड है। विष्णु जी नाभि से ब्रह्मा जी की उत्पति हुई जिन्होंने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया जिसमे हम रह रह रहे है यानि की जिस दुनिया में हम रहे है वह ब्रह्म जी की देन है उन्होंने अपनी योग साधना के तेज से सरस्वती जी को पैदा किया जिनसे उन्होंने बाद में विवाह कर लिया और उनसे उन्हें मानस पुत्र मनु पैदा हुआ।
मनु ने कठोर तपस्या करके शतरूपा को पत्नी रूप में प्राप्त किया जिनसे आगे मानव जाति का विकास हुआ। हम भी उन्ही मनु के वंशज हैं। जैसा कि आप सभी को पता है कि तीन लोक है स्वर्गलोक, मृत्यलोक और पाताललोक। (विष्णुपूराण में चौदह लोक बताए गए है। छः लोक मृत्युलोक से ऊपर है बाकि के सात लोक धरती के नीचे) हम सभी मृत्यलोक के वासी है, यहां जितने भी जीव जंतु है उनकी एक ना एक दिन मृत्य निश्चित है, यहां सभी को अपने कर्मानुसार फल मिलता है। जब भी धरती में अत्याचार बढ़ता है तब श्री हरी विष्णु अवतार लेते है और दुनिया का उद्धार करते है जैसे त्रेता युग में श्री राम के रूप में और द्वापर युग में श्री कृष्ण के रूप में और शायद कलयुग में श्री कल्कि के अवतार में दर्शन देंगे। गीता के ज्ञान में श्री कृष्ण ने आत्मा को अजर अमर बताया है। शरीर को जलाया जा सकता है लेकिन आत्मा को नही मृत्य के बाद आत्मा दूसरा शरीर धारण करती हैं जैसे हम नए वस्त्र धारण करते है। मृत्य के बाद आत्मा कौन सा शरीर धारण करेगी अगले जन्म के लिए मनुष्य या पशु-पक्षी का यह उसके पिछले जन्मों के कर्मो के आधार पर तय होता हैं। जिसने अच्छे कर्म किए हैं वह आत्मा मनुष्य का शरीर धारण करती है बाकि अन्य आत्माए अपने अपने कर्मो के आधार पर अन्य-अन्य जीव जंतुओ का शरीर धारण करती हैं। यह जन्म मृत्य चक्र ऐसे ही चलता रहता हैं। लेकिन कुछ भले लोग जो अध्यात्म का रास्ता अपनाते है, वह अपनी जिंदगी दुनिया की भलाई के लिए समर्पित कर देते है ऐसे लोगो की आत्माए मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति करती है और वह श्री हरी विष्णु के बैकुंठ धाम में निवास करती हैं। ऐसे लोगो के लिए ब्रह्मांड का मतलब मनुष्य का शरीर ही होता है वे अपनी योगसाधना से अपने शरीर के सातों चक्र को स्थिर कर सकते है, वे अपने मन की आंखो से ही ईश्वर के दर्शन कर लेते है, ये अपनी रोज की योग साधना के माध्यम से कुछ विशेष सिद्धियां प्राप्त कर लेते है। आपने ऐसे कई संत महात्मा देखे होंगे जो कई दिनो तक भूखे रह सकते है, कुछ बिना पानी पिए जिंदा रहते है, कुछ हिमालय की वादियों में तपस्या में लीन है, कुछ लोग समाधि धारण कर लेते है, लेकिन वे सभी जिंदा रहते है, ये सभी तपोबल रोज के योगाभ्यास से ही उन्हें प्राप्त हुए है। ऐसे ही एक संत है प्रेमानंद महाराज जिनकी दोनो किडनिया खराब है 17 वर्षो से लेकिन वह जीवित है और राधा कृष्ण के सत्संग करते है। इन सभी संत महात्माओं को मालूम है की ईश्वर हमारे मन के अंदर ही है क्योंकि ईश्वर धरती के कण-कण में निवास करते है। ऐसे आध्यात्मिक लोगो को अपने भविष्य के बारे में पता होता है, यहां तक कि भविष्य में होने वाली बड़ी घटनाएं चाहे वो अच्छी हो या बूरी दुनिया के लिए यह सभी वह अपनी योग साधना के माध्यम से जान लेते है। जो संत महात्मा, गुरुमाता (इनमें से कुछ धार्मिक लोग बहुत ही कम उम्र के भी होते है) वे सभी धर्म का प्रचार करके लोगो को सतमार्ग पर ले जाते है और उनकी परेशानियों का हल भी निकालते हैं। ये सभी मोक्ष पाते है क्योंकि वह दुनिया का उद्धार करते है, इनमे से कुछ संत महात्माओं को काफी अच्छी दान दक्षिणा भी मिलती है। जो सही मायने में संत होते है वे अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान में देते है क्योंकि वह जानते है की किसी जरूरतमंद की मदद करना यही हमारे पुण्यकर्मो में जुड़ेगा चाहे वो ज्ञान हो या किसी भी तरह की मदद। कौन सच्चा संत है यह समय बता ही देता है । ये सभी अपने पुण्यकर्मों से जीवित रहकर भी नाम कमाते है और मरने के बाद भी। ऐसे ही कुछ अन्य भले लोग भी हैं जो ईश्वर में ज्यादा आस्था तो नही रखते लेकिन वे जानते है की इंसानियत सबसे बड़ा धर्म होता है इसलिए वे भी जरूरतमंदों की सहायता करते है, उन्हें पता होता है कि हमने अच्छे कर्म किए है इसलिए हमारे साथ अच्छा ही होगा और उनके साथ अच्छा होता भी है। मैंने ऐसे कई शिक्षक देखे है जो अच्छा नाम, पैसा कमाते है अपनी मेहनत के दाम पर अपने कोचिंग सेंटर चलाकर लेकिन अगर उनके पास कोई गरीब विद्यार्थी पढ़ने के लिए आए जो प्रतिभाशाली हो तो वह उनकी फीस माफ कर देते या बहुत कम फीस लेते है। ऐसे ही कई समाज सेवी है जो लोगो की मदद करते है, ऐसे ही कई अन्य भले लोग कई क्षेत्रों में है चाहे वो राजनीति हो या व्यापार या कोई और क्षेत्र क्योंकि इन्हें पता होता है की यही कार्य हमारे पुण्य कर्मो में जुड़ेगा इसलिए वे भी कमजोर लोगो या जीव जन्तुओ की मदद करते है अपने तरीके से। इनमें से कुछ लोगो को आप जानते भी है। अपने परिवार के लिए तो एक जानवर भी करता है जैसे आप कुत्ते, बिल्ली या किसी अन्य जानवर को भोजन दो तो वह अपने परिवार के बच्चों को पहले भोजन करने देगा बाद में स्वयं लेकिन हम उस जानवर से श्रेष्ठ मनुष्य योनि में है अगर हम भी सिर्फ अपनी फैमिली के लिए कार्य करे तो मनुष्य और इंसान में क्या फर्क रह जाएगा। मान लीजिए मेरी मृत्य के बाद ईश्वर मेरी आत्मा से यह पूछे की अपने पुण्य कर्म बताओ तो क्या मैं उनसे यह कहूंगी की मैने अपनी फैमिली का ध्यान रखा उनके सुख-दुःख में हमेशा उनके साथ खड़ी रही, ईश्वर ने यही कहना है कि यह तो तुम्हारा कर्तव्य था यह कार्य तो एक जानवर भी अपने परिवार के लिए करता हैं तुम्हे मैने जीव जंतुओ में सबसे श्रेष्ठ योनि मनुष्य योनि में जन्म दिया था ताकि तुम अपने से कमजोर की मदद कर सको चाहे वो इंसान हो या पशु-पक्षी। अगर तुमने उनकी मदद की होती तो उनकी दुआएं तुम्हे लगती जो तुम्हारे पुण्य कर्मो में जुड़ता, तुमने जितना ज्यादा पुण्य कमाया होता उस हिसाब से तुम्हारी योनी निश्चित होती की तुम्हे मनुष्य योनि में भेजना है या अन्य जीव-जंतुओ की योनि में। अगर तुमने अपनी पूरी जिंदगी में अपने से कमजोर का भला ही किया है चाहे वो आर्थिक हो धार्मिक हो या अन्य किसी रूप में, किसी बेकसूर, निर्दोष इंसान की बददुआए नही ली, मेरा ही ध्यान किया, मुझ पर विश्वास किया, लोगो से मेरा ही सुमिरन करवाया उन्हें सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पे चलना सिखाया और खुद भी उसी रास्ते पे चले तो तुम्हे मोक्ष की प्राप्ति होती और तुम बैकुंठ में जाकर निवास करती लेकिन अगर तुम्हारे पुण्यों की संख्या कम होती तो तुम्हे मनुष्य योनि में जन्म लेना होता और अगर तुमने पूरी जिंदगी सिर्फ अपने लिए कमाया अपने लिए खाया, बेकसूर लोगो को सताया तो जितने ज्यादा तुम्हारे पापों की संख्या होगी उस हिसाब से तुम्हे किस पशु-पक्षी की योनि में भेजना है वह निश्चित होगा। मनुष्य स्वयं कमाकर खा सकता है, लेकिन अन्य जीव जंतुओं को दूसरो पर निर्भर रहना पड़ता हैं। इसलिए हमे अपने उद्धार के लिए जरूरतमंदो की मदद जरूर करनी चाहिए। मेरे कहने का मतलब यह नहीं की दूसरो का भला करने के लिए अपना बैंक बैलेंस पूरा खाली कर दे लेकिन हम छोटे-छोटे कार्य कर सकते है जैसे रोज गाय को एक रोटी दे सकते है या कई ऐसे भिखारी जो खुद कमाकर खा नहीं सकते क्योंकि या तो वह बहुत बुजुर्ग होते है या अपंग आदि। हालांकि मैं जानती हूं की यह कार्य ज्यादातर सभी लोग करते हैं, फिर भी हमारी जिंदगी में परेशानियां होती है। इसमें हमारी ही गलती है हम ईश्वर को मानते हैं, पूजते है लेकिन उनसे सीखते नही है राम और कृष्ण के रूप मे श्री हरी विष्णु जी ने मनुष्य रूप में अवतार लिया था जिसमे उन्होंने हमे यह समझाया था कि हमे अच्छो के लिए अच्छा बनना चाहिए और बूरो के लिए बुरा लेकिन हम अपनी अच्छी आदतों की वजह से बुरे इंसानों के साथ भी अच्छा व्यवहार करते है और वह हमारी भावनाओं का इस्तेमाल करते है जो हमारे दुःख की वजह बनता है ऐसे बुरे लोगो के लिए गीता में श्री कृष्ण ने कहा है की अगर आपके अच्छा करने के बाद भी कोई एक बार आपके साथ गलत करे और आप उसे माफ करे तो आप एक दयालु इंसान है, दूसरी बार भी वही इंसान आपके साथ गलत व्यवहार करे और आप उसे माफ करे तो आप एक समझदार इंसान है लेकिन अगर तीसरी बार भी वही इंसान आपके साथ गलत व्यवहार करे और आप उसे माफ करे तो आपसे ज्यादा मूर्ख इंसान कोई नहीं है। यह बात हमे ध्यान में रखनी चाहिए। इससे हम अपनी जिंदगी में स्थिरता ला सकते है जिससे हमारी परेशानियां कुछ कम हो सकती है, हमारा कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। अच्छे और बुरे लोग हमसे पहले भी थे, हमारे साथ भी है और हमारे बाद भी होंगे। अगर कोई इंसान पूरी जिंदगी खुश रहेगा तो वह दूसरो की सुख-दुःख की परवाह नही करेगा क्योंकि वह जानता है की उसे तो कोई दुःख मिलेगा नही ऐसे ही अगर कोई इंसान जिंदगीभर दुखी रहेगा तो वह या तो डिप्रेशन में आकर खुद को खत्म कर देगा या फिर दूसरो को खुश नहीं रहने देगा। इसलिए अच्छे और बुरे लोग हर युग में होते है जो प्रकृति का नियम है और जो शायद जरूरी भी है। जब हम ईश्वर को धूपबत्ती और दिया जलाकर मंदिर में पूजते है तो हम कुछ नियमों से बंध जाते है जो जरूरी भी है पर जब हम उसी ईश्वर को ध्यान साधना से प्राप्त करते है तो वह हमारे मन के अंदर हमारी आत्मा में ही निवास करते है, यानि की हम ईश्वर को किसी भी रूप में पूज सकते है मूर्ति रूप में भी और निराकार रूप में भी क्योंकि वह धरती के कण-कण में निवास करते है। हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल पाएंगे। परेशानियां सब की जिंदगी में है लेकिन जो लोग सीधे, सच्चे और ईमानदार होते है ऐसे लोगो की जिदंगी में परेशानियां ज्यादा होती हैं क्योंकि वह किसी भी गलत चीज के साथ समझौता नही करते, ऐसे लोगो को कई बार अपने परिवार और समाज के विरोध का सामना भी करना पड़ता है पर अंत में जीत सच्चाई की ही होती है। यह ब्रह्मांड ईश्वर की देन है और हम उसी की संताने है, आध्यात्मिक दृष्टि से ईश्वर हमारे मन हमारी आत्मा के अंदर है और हम अपने उद्धार के लिए कौन सा मार्ग अपनाए सतमार्ग का या कुमार्ग का यानि की हम अपने उद्धार के लिए सकारात्मक रहकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़े या अपनी जिंदगी के बुरे लोगो के बारे में सोचकर नकारात्मक रहे। शायद यह हमारे ही हाथ में ही है क्योंकि हमारे अंदर ही सारी ऊर्जा है सकारात्मक भी और नकारात्मक भी। वैसे इंसानी दिमाग नकारात्मकता पर ही पहले जाता है लेकिन यह भी सच है की यह नर्क का ही द्वार है।
विज्ञान और सनातन धर्म में ब्रह्मांड को लेकर समानता
विज्ञान और सनातन में ब्रह्मांड क्या है? को लेकर कई बिंदुओं में समानता है जैसे विज्ञान में बिग बैंग सिद्धांत शुरुआत से किसी ऊर्जा के होने के बारे में कहता है जो बिंदु के रूप में थी, वैसे ही सनातन धर्म में श्री हरी विष्णु की नाभि के बिंदु से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए और उन्होंने ब्रह्मांड का निर्माण किया। यहां पर विज्ञान और धर्म की सोच एक जैसी है। विज्ञान और सनातन हमारे ब्रह्मांड के अलावा अन्य ब्रह्मांड होने का भी दावा करते है। वैसे सिर्फ यही नहीं हमारे शास्त्रों, वेदों और पुराणों मे भविष्यकाल की कई घटनाएं पहले से ही वर्णित है जिसे विज्ञान ने बाद में खोजा है।
निष्कर्ष
ब्रह्मांड क्या है? इस विषय पर विज्ञान और सनातन धर्म कई बातों में एक ही राय रखता है तथा और भी कई बातों में सनातन विज्ञान से पहले कई बाते साबित कर चुका है जिसे विज्ञान ने बाद में माना है। इससे हमे यह पता चलता है की विज्ञान और सनातन धर्म एक ही सिक्के के दो पहलू है। चीजे एक ही है बस देखने का नजरिया अलग-अलग है। विज्ञान तथ्यो पर यकीन करता है और हमारा सनातन धर्म श्रद्धा और आस्था में विश्वास रखता है और सनातन धर्म की उत्पति विज्ञान से पहले की है। इसलिए जय हो ऐसे सनातन धर्म की ॐ नमः शिवाय 🔱।